
टिटलागढ़ (बलांगीर): देश की आज़ादी को 75 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, और हमारी सभ्यता आज आधुनिक युग में प्रवेश कर चुकी है। केंद्र और राज्य सरकारें विकास की बातें कर रही हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। ओडिशा के बलांगीर ज़िले के टिटलागढ़ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले भालेगांव पंचायत के बागडेहर गांव में गरीबी ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे एक पिता ने अपनी नवजात बेटी को मात्र 20 हजार रुपये में बेच दिया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बागडेहर गांव निवासी नल राणा की पत्नी ने 1 तारीख को एक कन्या को जन्म दिया था। लेकिन गंभीर आर्थिक स्थिति के कारण, उन्होंने अपनी दूसरी नवजात बेटी को बरगढ़ ज़िले के पाइकमाल क्षेत्र के एक व्यक्ति को 20 हजार रुपये में सौंप दिया।
स्थानीय लोगों के अनुसार, नल राणा का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन गुज़ार रहा है। कभी खाद्य सुरक्षा योजना के तहत उन्हें मुफ्त चावल मिलता था, जिससे वे किसी तरह दो वक्त का खाना जुटा पाते थे। लेकिन सरकार बदलने के बाद उनका नाम राशन कार्ड सूची से हटा दिया गया।
उनके पास न तो पक्का घर है, न प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है। न लेबर कार्ड है, न जॉब कार्ड और न ही कोई सरकारी सहायता। उनका घर मिट्टी और झाड़ से बना हुआ है, जो कभी भी गिर सकता है।
इस घटना ने सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत को उजागर कर दिया है। जिस देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारे दिए जाते हैं, वहीं गरीबी से मजबूर एक पिता को अपनी बेटी को बेचना पड़ता है।
सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और ऐसे परिवारों तक त्वरित सहायता पहुंचानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई और मजबूर पिता इस तरह का कठोर कदम न उठाए।